श्रीमती इंदिरा गांधी के पास नेहरु की विरासत थी, स्वर्गीय राजीव गांधी के पास इंदिरा जी की विरासत। लेकिन तुम्हारे पास बीते हुए वक़्त की कुछ स्मृतियाँ कुछ सुने सुनाए क़िस्से थे और एक माँ थी, जिसे सिर्फ़ और सिर्फ़ छोड़ना आता था, पहले अपना देश छोड़ा, फिर सत्ता छोड़ी, फिर तुम्हारे प्रति वो मोह छोड़ा जो पहले तुम्हारी दादी और फिर तुम्हारे पिता के जाने के बाद शायद और गहरा हो गया होगा।
मैं कल सोच रहा था कि तुमने बचपन में जो चश्मा लगाया था वो कब निकाल फेंका? कबसे तुमने बिना चश्मे के दुनिया को देखने की आदत डाली? किसी ने कहा कि राजीव जी के जाने के बाद तुमने बिना चश्मे के देखना सीख लिया था। मुझे लगता है यह अच्छा किया।आज तुम्हारा विडियो देख रहा था प्रवासी मज़दूरों से बात करते तो मुझे यक़ीन हुआ बिना चश्मे के तुम ज़्यादा बेहतर देख पा रहे हो, तुम्हारी आँखों के कोण बेहतर हैं।
मेरी और तुम्हारी उम्र में कुछ सालों का अंतर है तुम मुझसे उम्र में बड़े हो। मैं अक्सर तुम्हारे और तुम्हारी सरकार के ख़िलाफ़ आग उगलता हूँ कई बार तुम्हारे कहे, कई बार तुम्हारी ख़ामोशियों पर ग़ुस्सा आता है,कई बार तुम्हारे हथियार तुम्हारे तौर तरीक़ों से असहमत होता हूँ। लेकिन मुझे तुममें वो आग देखनी अच्छी लगती है जो केवल इसलिए है कि यह वक़्त ऐसा क्यों है? मगर अफ़सोस मैं यह आग ना तो देश के प्रधानमंत्री में देखता हूँ न तो उस किसी में जिनके हाथ में ताक़त है या फिर जो ताक़तवर बनना चाहते हैं।
तुम चाहते तो तुम भी औरों की तरह कांग्रेस के 70 साल के अतीत और उसकी कही सुनी गयी गौरवमयी गाथा पर सीना ताने राजनीति कर सकते थे लेकिन तुम्हें पता है कि जब अतीत की बात होगी, अकाल आएगा, आपातकाल आएगा, साज़िशें भी आएँगी, आपरेशन ब्लू स्टार भी आएगा, कभी वीपी सिंह आएँगे, कभी नटवर सिंह आएँगे कभी नरसिम्हाराव आएँगे। तुमने अच्छा किया शुरुआत शून्य से की। अब जो कांग्रेस है उसका निर्माण तुमने किया है तुम निर्माण कर रहे हो, इसके निर्माण का श्रेय मैं तुम्हारे पूर्वजों को नही दे सकता।
तुम इस देश की सम्भावना हो, ऐसा इसलिए हरगिज़ नही है कि तुम गांधी परिवार से हो, इस सम्भावना का निर्माण तुमने ख़ुद किया है। फिर कहता हूँ क्या फ़र्क़ पड़ता है तुम प्रधानमंत्री बनो न बनो? तुम्हारी पार्टी की सरकार बने न बने? इतिहास तो लिखेगा न , मुझ जैसे ख़बरनवीस भी लिखेंगे जब चारों तरफ़ ख़ामोशी थी,वीरानी थी तुम बोल रहे थे, तुम सड़क पर चल रहे थे, हार रहे थे, मगर चल रहे थे। यह बातें एक युवा दूसरे युवा से कह रहा है। मैं यक़ीन दिलाता हूँ तुम कभी सत्ता में रहे तो तुम्हारे ख़िलाफ़ भी लिखूँगा