उत्तराखंड के नेता, नौकरशाहों और जनमानस के नाम खुल पत्र

by | Dec 8, 2024

आज मैं आपको उत्तराखंड की कथा सुनाने जा रहा हूं । इस कथा में व्यथा भी है ,दुर्दशा भी है और सत्ता का नशा भी है!! यानि कि यहां की राजनीति , नौकरशाही,पत्रकारिता और आवाम का जो कॉकटेल बना है उसका क्या असर इस राज्य पर हुआ है?
जब पहाड़ों की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए इस राज्य का निर्माण हुआ था तो तब एक उम्मीद थी ,आशा थी कि अपना राज्य होगा …अपने नेता होंगे जो इस पहाड़ की पीड़ा समझेंगे ।
स्वर्गीय नारायण दत्त तिवाड़ी को छोड़कर बहुत कम लोगों में यहां राजनीतिक परिपक्वता दिखी। उस समय लाया गया निवेश और योजनाएं आज फलीभूत होती दिखी हैं।
राजनीतिक तजुर्बेकार कम लोग थे जिसका फायदा यहां के नौकरशाहों ने जमकर उठाया और आजतक भी कई उठा ही रहे हैं। यहां ब्यूरोक्रेट ऐसी ऐसी योजनाओं को बनाते रहे जो भले ही कभी धरातल पर न दिखी हों पर उन योजनाओं की रौनक नेताओं और अधिकारियों की कोठियों ,जमीनों , शानो शौकत में दिखती रही है। जिस भी नेता को मौका मिला उसने करोड़पति अरबपति बनने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । सबसे पहले नेताओं ने अपनी चमकीली कोठियां बनाई , फिर दिल्ली ,मुंबई से लेकर विदेशों तक फ्लैट खरीद डाले… अपने बच्चों से लेकर रिश्तेदारों के नाम अरबों खरबों की जमीनें खरीद डाली , अपनी पत्नियों और प्रेमिकाओं के लिए करोड़ों के गहने बनवा लिए।

जब भी किसी सिस्टम में बेइमानी घुसती है तो सबसे बुरा वहां की आम जनता का होता है। पीढ़ियां बर्बाद हो जाती हैं ।
भर्ती घोटालों की ही बात करें तो क्या हुआ ? पटवारी भर्ती ,दरोगा भर्ती से लेकर फोर्थ क्लास तक के पदों को ब्यूरोक्रेट और नेताओं ने बेच खाया।। राज्य बनने के बाद से ही हजारों लोग सेटिंग से नौकरी पा गए और गरीबों के बच्चे गांवों में ही अपना हल चलाते हुए मनरेगा में जीवन काटते काटते बूढ़े हो चले।
कौन से भर्ती घोटालों की जांच हुई ? राज्य बनने के बाद से बैकडोर से लाखों देकर नौकरी लगे लोग आज बड़े बड़े पदों पर पहुंच गए ? क्या हुआ उनका ? हाकम सिंह जैसे भी कुछ दिन जेल गए और वापस आकर फिर से अपने काम धंधों में जुट गए ?
नरेंद्र सिंह नेगी जी का गाना यहां फिट बैठता है जिसमे घनानंद जी ने अभिनय करते हुए कहा कि पेली अपडा लगोलू रे…!!! बस इसी तर्ज पर अपने अपनो को नौकरियां बांटी जाती रही। इसलिए तो आज गांव के गांव खाली हो गए । यहां के हताश ,निराश युवा अन्य शहरों में नौकरी करने चले गए और फिर कभी लौटकर नहीं आए। सरकारों ने पलायन के लिए एक आयोग ही बना लिया जिसपर हर साल करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं पर आयोग आंकड़े इकठ्ठा करने के अलावा क्या कर रहा है?किसी को नहीं पता।

आजतक के उत्तराखंड के इतिहास में सैकड़ों घोटाले उजागर हुए । 2002 से 2007 तक की कांग्रेस सरकार पर भाजपा ने आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस ने घोटाले कर दिए … लाल बत्तियां बांटकर प्रदेश का पैसा बर्बाद कर दिया फिर 2007 में भाजपा आई तो 2012 में कांग्रेस ने कहा कि बीजेपी ने छप्पन घोटाले कर दिए । हमारी सरकार आयेगी तो जांच होगी और भ्रष्टचारियों को जेल होगी। पर सत्ता पाते ही कांग्रेस भी भ्रष्टाचार में लिप्त हो गई।
पर सोचिए कभी किसी नेता के खिलाफ कोई कार्यवाही हुई हो ?? यानि कि एक दूसरे के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करता …क्योंकि कोई दाज्यू,तो कोई भेजी,भुल्ला करके नौकरशाहों द्वारा भ्रष्टाचार के मंथन से निकले मक्खन के चटकारे लेता रहता है।
और जो आवाज उठाए तो वो ब्लैकमेलर कहलाया जाता है ,दलाल कहलाया जाता है। क्योंकि इन भ्रष्टाचारियों की चौकड़ी ही ऐसी है कि जो भी इनके खिलाफ बोले तो ये सब एकजुट हो जाते हैं और लड़ने वाले को ही बदनाम करना शुरू कर देते हैं।

आज पौड़ी में बने मंडल मुख्यालय में कितने अधिकारी बैठते हैं ?सोचिए जरा!! सबने देहरादून में ही कैंप कार्यालय बना लिया है। किसी को पहाड़ में जाना ही नहीं … !! जिस पहाड़ी राज्य में पहाड़ में पोस्टिंग को पनिशमेंट माना जाता हो … सोचिए उन पहाड़ों के प्रति नेताओं और अधिकारियों की क्या सोच होगी ?
इसीलिए तो बेबस और लाचार जनता भी आज पलायन के लिए मजबूर है। लोग कर्जा लेकर किसी तरीके से फटाफट पहाड़ों से निकलना चाहते हैं क्योंकि जब सरकारें पहाड़ों में सुविधाएं ही नहीं देंगी तो आम आदमी करेगा क्या ?
स्विट्ज़रलैंड जैसे देश की भौगोलिक परिस्थितियां भी तो हमारे उत्तराखंड के पहाड़ों जैसी ही हैं फिर भी क्या कारण है कि हमारे पहाड़ आज वीरान होते जा रहे हैं। सैकड़ों गांव भूतिया गांव हो चुके हैं जिन्हें लोग छोड़कर जा चुके हैं।
आखिर सरकारें पहाड़ों के लिए अलग नीति क्यों नहीं बना पाई ? अपने अधिकारियों को पहाड़ क्यों नहीं चढ़ा पाई? क्यों विकास पहाड़ नहीं चढ़ पाया और आजतक हाँपता ही रह गया ??

आज भू कानून और मूल निवास की तेजी से मांग बढ़ रही है। वो भी तब जब सारी जमीनें बिक चुकी। कृषि भूमियों पर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए !! मूल निवास खत्म करने वाली कौन सी सरकार थी ?
आज पहाड़ों को 5th शेड्यूल में लाने की भी पैरवी हो रही है जो तर्कसंगत भी है। पहाड़ के लोगों को आदिवासी का दर्जा मिलने से ही उनके हक हकूक संरक्षित रह पाएंगे।

दरअसल ब्यूरोक्रेट ने जो किताब पढ़ाई वही हमारे नेताओं ने पढ़ी क्योंकि राजनीतिक परिपक्वता नहीं थी जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा।

राज्य बनने के बाद से लेकर आजतक कौन कौन ऐसे ब्यूरोक्रेट रहे जिन्होंने इस प्रदेश को बेचने में कोई कसर न छोड़ी हो । लिस्ट निकाली जाएगी तो 100 का आंकड़ा पार कर जाएगा। कई तो रिटायर भी हो चुके हैं जो बाद में कई मंत्रियों के काम धंधों में पार्टनर बने । भ्रष्ट ब्यूरोक्रेट इस राज्य के संसाधनों को लूटकर बाहर ले गए। यहां की सरकारों के दलाल दिल्ली में बैठकर इस प्रदेश का सौदा करते रहे।

अब चूंकि मैं राजनीति में हूं इसलिए कुछ मर्यादाएं भी हैं लेकिन दावे के साथ कह सकता हूं कि मुझसे सबूत मांगे जाएंगे तो पूरी पड़ताल फिर से करके पैन ड्राइव में सारे सबूत दे दूंगा।
मैने हथियार रखे हैं … चलाना नहीं भूला। राज्य के साथ धोखा करने वालों के कई कच्चे चिट्ठे मैने ही खोले हैं। जिसका खामियाजा भी मुझे ही भुगतना पड़ा। अपना घर , परिवार सब दांव पर लगा दिया। सरकारों ने मेरी गिरफ्तारी करवाई । घर की कुड़की करवाई । सीबीआई, ईडी ,फेमा सबकुछ करवाया पर क्या हुआ ? सत्य मेव जयते। मुझे पता है,मेरी आत्मा को पता है जब मैने इस राज्य के साथ कभी कुछ गलत किया ही नहीं तो कोई मेरा कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता। भगवान बद्री केदार का आश्रीवाद सदैव मेरे ऊपर है।

2022 में जब चुनाव लड़ रहा था तो बड़े बड़े राजनीतिक विश्लेषक आकंड़े लगा रहे थे कि उमेश कुमार तो कभी जीत ही नहीं सकता। जब जीता और उनके आंकड़े धराशाही हो गए तो तब कहने लगे कि करोड़ो रूपये में वोट खरीद लिए ….!! अरे सत्ता के दलालों ,उत्तराखंड की जनता तुम्हारी तरह बिकाऊ नहीं हैं । उत्तराखंड की जनता का जमीर जिंदा है। जनता सच्चे दिल से जब किसी को चाहती है तो उसका हमेशा ही साथ देती है। अभी भी दिन रात मेहनत करता हूं क्षेत्र में रहता हूं। सबकी मदद में जुटा रहता हूं। मेरा भी सपना है कि अपनी विधानसभा के लिए ऐसे काम करवाए जाएं जिन्हें कई पीढ़ियां याद रख सके। अपनी विधानसभा में सिडकुल बनवा रहा हूं जहां हजारों युवाओं को नौकरियां मिलने जा रही हैं जहां उत्तराखंड के 90 फीसदी युवाओं को नौकरी दिलवाने की मेरी जिम्मेदारी है। उप जिला अस्पताल बनवा रहा हूं जहां गरीब ,मजलूमों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके। क्योंकि हमें रोजगार ,स्वास्थ्य और शिक्षा पर सबसे ज्यादा फोकस करने की जरूरत है। इन्हीं तीन चीजों से ही बदलाव लाया जा सकता है।

मैने भी जीवन में हमेशा ही संघर्ष किया और अपनी मेहनत से खड़ा हुआ हूं। इस राज्य को जब भी जिसने भी बेचने की कोशिश की अपनी जान दांव पर लगाकर उनके साथ लड़ा हूं ,भिड़ा हूं और जीता हूं।
अगर फिर जरूरत होगी तो जनता के आश्रीवाद से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ने के लिए तैयार हूं । लेकिन मेरा मानना है कि जनता को भी आगे आना होगा। जहां भी जो भी गलत हो रहा है उसके खिलाफ आवाज उठानी होगी। मैं हमेशा ही आपके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने के लिए तैयार हूं।