विषय:- पुनः , अधमरा बच्चा, उसके मरने का इंतज़ार करता गिद्ध और एक फोटोग्राफर के सम्बंध में याद दिलाने हेतु
साउथ अफ्रीका के फोटोजर्नलिस्ट केविन कार्टर के बारे में आपको बताना चाहता हूँ । केविन ने अफ्रीकी देश सूडान में 1993 में पड़े अकाल के वक्त भूख से तड़पते एक बच्चे की फोटो खींची थी। इस फोटो के लिए उसे पुलित्जर प्राइज मिला। पर उस बच्चे को न बचा पाने के गम में केविन डिप्रेशन में चले गए और अवॉर्ड मिले के 3 महीने बाद ही उन्होंने सुसाइड कर लिया था। जब फोटोग्राफर केविन फोटो क्लिक कर रहा था, डरे और असहाय बच्चे के पास एक गिद्ध उसके मरने का इंतज़ार कर रहा था। वह फोटो न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी, उस फोटो के लिए केविन को पुलित्जर पुरस्कार मिला। जब एक पत्रकारों ने केविन से पूछा था कि उस बच्चे का क्या हुआ? केविन कार्टर ने कहा था- उसे नहीं पता कि उस बच्चे का क्या हुआ? उसे घर जल्दी लौटना था, इसलिए वह चला आया था। एक रिपोर्टर ने जब पूछा कि जब केविन फोटो खींच रहे थे वहां कितने गिद्घ थे? केविन ने जब जवाब में कहा -एक। तब रिपोर्टर ने कहा था – एक नहीं, वहाँ दो गिद्घ थे, एक बच्चे के मरने का इंतज़ार कर रहा था और दूसरे के हाथ में कैमरा था।
यह फोटो साउथ सूडान में भुखमरी से जूझ रही एक बच्ची की थी, जोकि अपने माता पिता की झोंपड़ी की ओर रेंगकर जाने की कोशिश कर रही थी। माता—पिता खाना ढूंढने जंगल गए हुए थे। भूख ने उस बच्ची को बेदम कर रखा था। एक गिद्ध उसकी ताक में बैठा था, जोकि उसके मरने का इंतजार कर रहा था। केविन ने लिखा कि उन्होंने 20 मिनट तक उस गिद्ध के वहां से उड़ने का इंतजार किया और जब वो नहीं उड़ा तो उन्होंने ये फोटोग्राफ क्लिक किया। वापस आकर केविन कार्टर ने इस फोटो को न्यू यॉर्क टाइम्स को बेच दिया। यह फोटो पहली बार 26 मार्च 1993 को New York Times में प्रकाशित हुआ था। फोटो का केप्शन था ”Metaphor For Africa’s Despair”। फोटो के प्रकाशित होते ही लाखों लोगों ने केविन कार्टर से इस इथोपियाई बच्ची के बारे में हजारों सवाल किए। कईयों ने उस पर यह आरोप भी लगाए कि उसने उस समय फोटो खींचना ज्यादा उचित समझा, जबकि वह उस रेंगती हुई बच्ची को बचा सकते थे। केविन को हमेशा उस इथोपियाई बच्ची की याद आती रही। लोगों के सवाल और उलाहने उनको परेशान करते रहे। उनको यह ग्लानी और अपराध बोध सताता रहा कि उन्होंने उस बच्ची को बचाने की पूरी कोशिश नहीं की और न ही यह देख पाए कि वो जिंदा रही या मर गई। अपराध बोध और ग्लानी में वह परेशान हो गए। करीब तीन महीने बाद उन्होंने आत्महत्या कर ली। बहुत कम लोगों को पता है कि केविन कार्टर ने जो फोटो ली थी दरअसल वह लड़की की नहीं लड़के की थी। लड़का उस समय बच गया था लेकिन 2007 में दिमागी बुखार से उसकी मृत्यु हो गयी थी।
क्या आप अपने AC कमरे से बाहर निकलते हैं? आपकी हालत पर गिद्ध और फोटोग्राफर की स्टोरी फीट बैठती है। आपका काम केवल अपनी प्रशंसा करना , सरकार के वो काम गिनाना जिनके होने से जनता को तनिक भी लाभ ना पहुँचे …
स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के चलते:-
1) रिखणीखाल में स्वाति की अपने बच्चे सहित मौत।
2) ग़ैरसेण में हीरा देवी की अपने बच्चे सहित मौत ।
3) अल्मोड़ा में आशा देवी अपने बच्चे सहित मौत के मुँह में समा गयी
3) 03 मार्च को उत्तरकाशी चिन्यालीसौड़ के सुनील कुमार की गर्भवती पत्नी रूपा भी चिकित्सा असुविधाओं की भेंट चढ़ गई थी । जहाँ सुनील ने अपना जच्चा बच्चा खो दिया था ।
4) सितंबर 2018 में मसूरी निवासी सुरेश राणा की पत्नी जिसे कि दून अस्पताल में बेड तक नही मिला और 5 दिनों तक बरामदे में पड़ी रही ,खुले में ही उसने बच्चे को जन्म दिया बीस मिनट तड़फने के बाद उसकी मौत हो गयी ।
5) 12 मई 2020 को पिथौरागढ़ के जलतूरी गांव की निवासी कल्पना देवी व उसकी नवजात बच्ची भी बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की भेंट चढ़ गयी थी ।
6) चकराता ब्लॉक के सीडी गाँव की आठ साल 8 साल की बच्ची की समय अस्पताल ले जाते ऑक्सिजन ना मिलने के कारण मौत हो गयी।
7) पिथौरागढ़ के जाखनी में प्रसूता जंगल में चीखती चिल्लाती रही और अंत में बच्चे को जंगल में ही जन्म देना पड़ा ।
8)चम्पावत से अस्पताल के जाते हुए एम्बुलेंस में ऑक्सिजन ना होने के कारण बुजुर्ग की जान चली गयी।
- हाकम सिंह और उसके गैंग द्वारा उत्तराखंड के बेरोजगारों के जीवन के साथ खिलवाड़
क़िस्से तो कई हज़ार है लेकिन सभी को लिखना सम्भव नहीं है ।
इतने सुनने के बाद यदि कुछ समझ आ जाए तो जाग जाइए ।
जागो आप लोग , कम से कम अपने दो नेत्र तो खोलो
देर ना हो जाए , कहीं देर……
आपका
उमेश कुमार
वरिष्ठ ब्लैकमेलर पत्रकार
पूर्व पता
सुद्धोवाला जेल
29 अक्टूबर 2018 से 16 नवम्बर 2018
राँची जेल
19 नवम्बर 2018 से 29 नवम्बर 2018
वर्तमान पता
निर्दलीय विधायक खानपुर
अकौड़ा कलाँ , तहसील लक्सर
हरिद्वार