उत्तराखंड की राजनीति में दल्लों की यानि कि दलाली करने वालों की कहानी तिवाड़ी जी के कार्यकाल से चली आ रही है या यूँ कहें कि राज्य गठन के बाद से आजतक अनवरत ये परंपरा जारी है….!!! हालांकि दलाली की इस परम्परा का किसी व्यक्ति विशेष से संबंध नहीं है क्योंकि यह एक खास किस्म का वायरस है। मुख्यमंत्री कोई भी रहे उसके आस पास दलाल नाम के वायरस की यह प्रजाति खुद ब खुद उत्पन्न हो जाती है ….. इन दलालों का राज्य से कोई सरोकार नहीं होता है ये अपनी सौदेबाजी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
नौकरीयों का दल्ला… हाकम सिंह हो या खनन,शराब के अन्य दल्ले…..!!!!
इन दल्लों का इतिहास उठाकर देख लीजिए इनकी सुनवाई भी ऊपर से लेकर नीचे तक फटाफट हो जाती है…..क्योंकि दल्ले तो दल्ले होते हैं जो मैनेज करने की इस ट्रिक में माहिर होते हैं…!!
इन दल्लों की चर्चा देश की राजधानी दिल्ली के व्यापारिक घरानों में भी खूब होती है….. कई बार तो व्यापारिक घरानों के मेरे मित्र मुझसे ही इन दल्लों की चर्चाएं करते हैं …..!!! कि फलां दल्ला…फलां प्रोजक्ट करवा लेगा?? फिर सुनकर बड़ी हंसी भी आती है और तरस भी आता है इन दल्लों पर !!! मजे की बात इन दल्लो के बारे में अधिकतर पत्रकारों को सब जानकारी रहती है लेकिन इनके क़हर से विज्ञापन रुकने के डर के कारण आँख बंद कर लेते है जप करते है “जाहि विधि रहे दल्ले ताहि विधि रहन दीजिए ।।
दलाल नाम की इस प्रजाति से किसी भी मुख्यमंत्री का कार्यकाल अछूता नहीं रहा…..!!! इस दलाल नाम की प्रजाति का संक्रमण करवाने में मुख्यमंत्रियों से ज्यादा उनके आस पास के सलाहकारों की भूमिका ज्यादा रही !!!
देखकर और सुनकर बड़ा आश्चर्य भी होता है कि कई जिलों के अधिकारी भी इस दलाली नाम के वायरस से संक्रमित हो गए हैं। किस सचिव के घर में कौन दल्ला बनकर घूम रहा है? सचिव के घर के जलसे करवाने से लेकर पानी भरवाने तक की जिम्मेदारी ये दल्ले सहज रूप से ले लेते हैं । चंद बड़े अधिकारी तो ऐसे भी रहे जिनके घर में सब्जी पहुंचाने से लेकर बच्चों के हवाई यात्रा के टिकट से लेकर लक्ज़री गाड़ियों की व्यवस्था तथा देश विदेशों तक होटल के कमरे कराना भी शामिल रहा है
उत्तराखंड छोटा राज्य है इसलिए इन दल्लों की खबरों के चर्चे पान के खोके से लेकर चाय के नुक्कड़ तक सुनाई देते हैं।
आज ये राज्य अपेक्षाओं के अनुरूप क्यों नहीं पाया? क्योंकि यहां दल्ले सक्रिय रहे ….जो विकास की योजनाओं से लेकर सरकारी खरीद फरोख्त के टेंडर तक बेच कर खा गए !!!
हर योजना में कमीशन का स्रोत ढूंढने वाले दल्ले ही उत्तराखंड के विकास में रोड़ा अटकाने का काम करते आए हैं क्योंकि उन्हें उत्तराखंड के किसी भी सरोकार से कोई लेना देना नहीं होता।
उनके लिए उत्तराखंड यानि कि पैसा कमाने का प्रोजक्ट…!!! अभी के लिए दल्ला पुराण पर विराम अगले अंक में किसी दल्ले के कारनामों के साथ हाजिर होंगे।