ये पहाड़-प्लेन करना बंद करो।

by | Sep 15, 2025

जय उत्तराखंड। जय बद्री केदार।
उत्तराखंड के लोगो के नाम मेरा खुला पत्र।
ये पहाड़ प्लेन करना बंद कर दो।

जैसे हमें हमारा भारत देश शहीदों की कुर्बानी के बाद मिला वैसे ही उत्तराखंड राज्य भी एक क्रांति के बाद हमें शहीदों की शहादत के बाद मिला है। जिसमें पहाड़ी भी थे , मैदानी भी थे ,वो इस राज्य में कोई पहाड़ मैदान की खाई बनाना नहीं चाहते थे।
देश के सीडीएस से लेकर सुरक्षा सलाहकार तक हमारे उत्तराखंड से हैं । आज देश के सबसे बड़े राज्य यूपी के सबसे पावरफुल मुख्यमंत्री माननीय योगी जी भी हमारे ही उत्तराखंड से हैं। दिल्ली में दो विधायक पहाड़ी मूल के है जिन्हें विधायक पहाड़ी और मैदानी में मिलकर ही बनाया होगा।

पिछले कुछ समय से देख रहा हूं कि गाहे बगाहे कुछ ऐसे प्रकरण सामने आते हैं जिनमें पहाड़ी मैदानी में इस उत्तराखंड को बांटने का काम किया जाता है। समाज में एक वैमनस्यता का भाव लाने का प्रयास किया जाता है।

आज हमारे उत्तराखंड के 70 लाख से ज्यादा लोग देश के महाराष्ट्र, दिल्ली , मध्य-प्रदेश , चेन्नई , हरियाणा और अन्य राज्यों सहित विदेशों में अपनी रोजी रोटी और भविष्य के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनमें सबसे ज्यादा संख्या हमारे हॉटिलियर्स भाइयों की है जो देश विदेश के कोने-कोने में मौजूद हैं। उनसे पूछिएगा क्या उनके साथ भी वहां पहाड़ी मैदानी जैसा भेदभाव होता है?
महाराष्ट्र में भी एक ऐसा ही समुदाय था जो लोगों को बाहरी भीतरी होने पर अपमानित करता था । अब जबसे उस समुदाय का विरोध होने लगा और लोग सीधे उनको जवाब देने लगे हैं । लोग खुलकर कहने लगे हैं कि ये हमारा हिन्दुस्तान है । यहां जम्मू-कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हमारे देश की आबोहवा है । कोई बाहरी भीतरी नहीं हैं ।सब भारतीय हैं ,हिन्दुस्तानी हैं।
जिन बड़े होटलों ,फैक्ट्रियों , कम्पनियों में हमारे उत्तराखंड के पहाड़ी भाई काम करते हैं उनमें से अधिकांश संस्थान भी वहीं के मैदानियों के हैं। पूछिएगा कि क्या वो लोग आपसे कोई भेदभाव करते हैं ?

उत्तराखंड की राजनीति में करने के लिए बहुत कुछ है। पहाड़ के लोगों का जीवन आज भी बड़ा कष्टकारी है। अस्पताल , शिक्षा,रोजगार ,सड़क ,बिजली ,पानी , इन 25 वर्षों में हम इन्हीं चीजों को लेने के लिए सड़कों पर आंदोलनों के माध्यम से नहीं लड़ पा रहे हैं। पहाड़ के लिए न तो कोई नीतिगत ड्राफ्ट बना पाए हैं , न इस दिशा मे कोशिश हो रही है कि कैसे पहाड़ का भला हो सके।

हां एक नारा जरूर सुनाई दे रहा है कि… उत्तराखंड में रहना होगा तो जय पहाड़ी कहना होगा?
इससे क्या हो जाएगा भाई? इससे क्या लोगों की समस्याओं का समाधान हो जाएगा?
और ऐसा अन्य राज्यों में भी लोग करने लगे कि दिल्ली में रहने वालों को जय दिल्ली, पंजाब में रहने वालों को जय पंजाबी , तमिल में रहने वालों को जय तमिल कहना होगा । फिर क्या ये सही है ? मित्रों एक चिंगारी कभी-कभी आग का ज्वालामुखी बन जाती है, उत्तराखंड से निकली चिंगारी पूरे देश में भी फेल सकती है। मेरा आपसे निवेदन है कि ऐसी बातें कहें ना सुने जिस से कल को सामाजिक समरसता भंग हो।

अरे… जय पहाड़ी से ऊपर तो यहां साक्षात भगवान बद्री-केदार बैठे हैं । हम तो सनातनी लोग हैं इसलिए जय बद्री केदार बोलने भर से ही हमारी ऊर्जा कई सौ गुना बढ़ जाती है। पहाड़ी भी तो उसी बद्री-केदार का अंश मात्र है। करिए शुरू जय बद्री-केदार , जय उत्तराखंड

उत्तराखंड क्रांति दल के लिए मेरा सदैव से ही सम्मान है। मैने ही सबसे पहले नारा दिया था कि …. ये किसने दिया था “दल नहीं दिल है” मैंने दिया था कोविड के दौरान। उत्तराखंड क्रांति दल में आज हरिद्वार और उद्यमसिंह नगर से भी मैदानी लोग जुड़े होंगे । उनसे पूछना पहाड़ी मैदानी करने से क्या हासिल होगा?

जय पहाड़ बोलने में भी किसी को कोई गुरेज नहीं है लेकिन जय पहाड़ी क्यों ? क्या उत्तराखंड में के मैदान में 50% लोग नहीं रहते ? इस राज्य के लिए जैसा कि मैंने पहले भी कहा कि पहाड़ी मैदानी सभी ने उत्तराखंड के लिए बलिदान दिया इसलिए हमें उत्तराखंड बोलने में गर्व होना चाहिए। लेकिन हालिया दरोगा प्रकरण में अगर दरोगा ने भी कोई अपशब्द कहे हों तो वो भी गलत होगा, और अगर रजनीश सैनी ने उत्तराखंड के लिए कोई उपजाने कहे है तो उसका वीडियो मुझे दिखाओ मैं उसके ख़िलाफ़ कार्यवाही को बात करूँगा ल। दिक्कत क्या है जो सवाल उठा रहे है वो 2000 के बाद की पैदायश है और जिसमे जवाब दिया वो सब 2000 से पहले की, जो उत्तर प्रदेश में पैदा हुआ है वो क्या बोलेगा , कहाँ पैदा हुआ ? लेकिन किसी को सिर्फ इस बात पर प्रताड़ित करना कि वो उत्तराखंड में पैदा नहीं हुआ ? ये उसकी गलती है क्या? जिस तरह एक पुलिसकर्मी को सार्वजनिक तौर पर अपशब्द कहे गए , अपमानित किया गया, क्या ये सही ठहराया जा सकता है ? क्या दोष था उसका सिर्फ उसके नाम के पीछे सैनी लिखा हुआ था ?
और वैसे भी नवंबर 2000 से पूर्व तो सभी की मार्कशीट और जन्म प्रमाण पत्र पर जन्मस्थान उत्तर प्रदेश ही तो था अगर नहीं था तो दिखा दो हम तुम्हें सही मान लेंगे।

कुलमिलाकर मेरा सिर्फ इतना कहना है कि इस उत्तराखंड के लिए करने के लिए बहुत कुछ है क्योंकि अभी तक इन 25 वर्षों में देखिए हमने क्या खोया है और क्या पाया है?
इस खूबसूरत से उत्तराखंड को पहाड़ मैदान में मत बांटिए। यहां सद्भाव,भाईचारा और प्रेम भाव संजोने का प्रयास कीजिए। कुछ करना ही है तो मुद्दों के लिए लड़िये ताकि इस उत्तराखंड के भविष्य को बेहतर बनाया जाय। आपकी पीड़ा यही है ना कि सभी नेताओं ने पहाड़ी की पीड़ा नहीं समझी , पहाड़ को नहीं समझा सिर्फ चोरी चाकरी में लगे रहे। आओ साथ मिलकर चोरों का इलाज करते है , भ्रष्टाचारियों का इलाज करते है। बाक़ी मेरे शब्दों से किसी को भी कहीं भी कोई ठेस लगी हो तो छोटा-बड़ा मानकर माफ़ कर देना।
और सबसे आख़िर में, रामपुर तिराहा कांड की काली रात में मदद करने वाले बहन
बेटियों कीइज्जत बचाने वाले भी मैदानी थे और अंत में आज रामपुर तिराहे पर बना शहीद स्मारक जो हर उत्तराखंडी को गर्व महसूस कराता है, वो भी मैदान के मुजफ्फरनगर के रहने वाले मेरे दिल के बड़े करीब रहे स्वर्गीय महावीर शर्मा जी की जमींन पर बना है जो उन्होंने शहीदों की
याद में स्मारक बनाने हेतु समर्पित की थी।
पहाड़ों का भला सिर्फ़ गैरसेन में राजधानी बनाने से और उसके लिए आंदोलन भी शुरू मैं ही करूँगा ।
गैरसेन स्थायी राजधानीं
हरिद्वार अस्थायी राजधानी

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जय उत्तराखंड। जय बद्री-केदार। भारत माता की जय।