कौन हैं उत्तराखंड की राजनीति के पांच पाण्डव? और कौन है कांग्रेस का उज्याडु बल्द ?
उत्तराखंड की राजनीति को मै राज्य बनने के बाद से ही बहुत नजदीक से देखता आ रहा हूं। आज विधायक जरूर हूं लेकिन एक पत्रकार के तौर पर समय समय पर राजनीति पर अपनी समीक्षा लिखता आया हूं।
क्या अब 2027 के चुनावों में पांच पांडवों की जोड़ी इस राजनीतिक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी?
आखिर कौन हैं वो पांच पाण्डव ?
कांग्रेस के परिपेक्ष में गणेश गोदियाल, प्रीतम सिंह और हरक सिंह इन तीनों को कांग्रेस ने वो जिम्मेदारी दी है जिसमें तीनों परांगत नजर आते हैं।
अब बाकी के दो कौन हैं ?
स्वाभाविक सी बात है कि हरीश रावत का नाम भी कुछ लोगों के मन में आ रहा होगा? इस पर आगे पूरी समीक्षा करूंगा…।
लेकिन फिलहाल बाकी के दो नामों में यशपाल आर्य और करण महारा नजर आते हैं। जो पांच पांडवों की जोड़ी में फिट नजर आते हैं।
हरीश रावत को इन पांच पांडवों से बाहर रखने का एक नहीं बल्कि कई कारण हैं ।
हरीश रावत स्वघोषित डांडी कांठी और गाड़ गदेरों के नेता हो सकते हैं लेकिन राजनीतिक रूप से हरीश रावत आज की डेट में कांग्रेस पार्टी के लिए एक कलंक के रूप में हैं।
हरीश रावत के जिसके भी कंधे पर हाथ रखते हैं , उसे कुछ दिनों बाद ही पता चल जाता है कि उसके कंधे पर जख्म हो गया।
हरीश रावत पहले से ही एकला चलो की राजनीति करते आए हैं और कांग्रेस में एक के बाद कई नेताओं को उन्होंने पनपने नहीं दिया।
किशोर उपाध्याय को ही ले लिजिए….। नारायण दत्त तिवारी जी के मुख्यमंत्री बनते ही हरीश रावत ने किशोर उपाध्याय को तिवाड़ी जी के खिलाफ उतार दिया था ,पार्टी के लोगों को भी खूब भड़काया था। जैसे ही किशोर उपाध्याय के राज्यसभा जाने का नम्बर आया तो हरीश रावत ने किनारा कर लिया।
ज्यादा दूर मत जाइए … 35 वर्षों से हरीश रावत के साथ में रहे रणजीत रावत के कंधों के जख्म जब ज्यादा गहरे हो गए तो उन्होंने खुद को हरीश रावत से अलग कर दिया ।
अभी कुछ ही समय पहले हरीश रावत एक नई राजनीति अपनी ही पार्टी के भीतर चल रहे थे जब प्रीतम सिंह को आगे करने की कोशिश कर रहे थे। दरअसल ये उनकी प्रीतम सिंह के लिए कोई सिंपैथी नहीं थी बल्कि एक गहरा षडयंत्र था जिस चाल को कांग्रेस का हाई कमान भी समझ चुका था इसीलिए उन्होंने हरीश रावत के मशविरे की बजाय एक नई टीम बनाई जिसकी भनक भी हरीश रावत को नहीं लग पाई।
पिछले दो चुनाव हार चुकी कांग्रेस ने जब जब समीक्षा की तब तब हरीश रावत कांग्रेस के उज्याडु बल्द के रूप में सामने आए जो असली हार की वजह बने।
हरीश रावत का अब एक ही मकसद है कांग्रेस में सक्रिय रहने का ताकि अब दोनों बेटे ,बेटी को भी टिकट देकर विधायक बनाकर स्थापित किया जाय।
खुद भी हरीश रावत अपने हाई कमान से अपने टिकट के लिए दरख्वास्त लगा चुके हैं कि बस… एक लास्ट बार टिकट दे दो…। सुनने में आ रहा है इस बार हरीश रावत की नजर धर्मपुर सीट पर लगी हुई है।
इसलिए अब हाईकमान और कांग्रेस भी हरीश रावत से किनारा करने लगे हैं क्योंकि हरीश रावत के परिपेक्ष में एक कहावत भी है कि… जहां जहां पड़े हरीश रावत जैसे संतन के पांव… वहां वहां… हुआ … बंटाधार..।
आजकल हरीश रावत विष पुरुष की बात कर रहे हैं। वैसे तो समाज में कई विष पुरुष हो सकते हैं पर कांग्रेस के विष पुरुष तो हरीश रावत ही हैं।
पंजाब गए तो पंजाब कांग्रेस का बंटाधार कर दिया …. तभी तो अमरिंदर सिंह ने कहा कि
अमरिंदर ने कहा- आप जो बोते हो ,वही काटते हो। ऑल द बेस्ट!!
असम गए तो असम में कांग्रेस का क्या हाल कर दिया।
सही मायनों में हरीश रावत न सिर्फ कांग्रेस के निकले बल्कि कांग्रेस के ऐसे विष पुरुष निकले कि जहां जहां गए वहां कांग्रेस के ही लोगों को हो डंसते चले गए।
अरे! हाँ, विष पुरुष से याद आया , आपने दो दिन पहले एक सभा में कहा कि समाज काफ़ी विष पुरुष है , वो चाहे तो थोड़ा विष मेरी जेब में डाल दें। अरे हरदा , आप तो ख़ुद इतने जहरीले हो कि आपको डंसने से तो स्वयं कोबरा भी यमराज को प्यारा हो सकता है।
खैर, कांग्रेस ने अब जो अपने पांच पांडवों की टीम बनाई है उसमें सारे राजनीतिक समीकरण साधने के प्रयास नजर आते हैं । उम्मीद जताई जा रही है कि ये पांच पाण्डव कांग्रेस की बेहतरी के लिए अच्छे प्रयास करेंगे।

