ठाकरे ब्रो कोड : शून्य को शून्य मे जोड़ो या गुणा करो परिणाम शून्य ही होता है।

by | Jul 6, 2025

शून्य को शून्य मे जोड़ो या गुणा करो परिणाम शून्य ही होता है।

मुंबई प्रवास के समय कई शुभचिंतको ने ठाकरे बंधुओ पर खुलकर लिखने से मना किया था मगर अब दिल्ली मे तो खुलकर लिखा जा सकता है।

दरसल महाराष्ट्र की राजनीति बड़ी रोचक है, 6 संभागो से मिलकर बना राज्य है। जमीन पर जो पकड़ RSS की है दूर दूर तक किसी दल से उसका मुकाबला नहीं है। ठाकरे बंधुओ और एकनाथ शिंदे की शिवसेना की भी बात करें तो इनका थोड़ा बहुत प्रभाव कोंकण और नासिक संभाग मे है।

शेष जगह बीजेपी और अजीत पवार की NCP का दबदबा है। अशोक चव्हाण के बीजेपी मे आने से कांग्रेस भी खत्म है। राज ठाकरे तो राजनीतिक रूप से हर जगह शून्य है ही, उद्धव शरद पवार की कृपा पर टिका है।

मुंबई की नगर पालिका का बजट कई राज्यों से ज्यादा है इसका चुनाव भी आ रहा है। ये उद्धव के लिये बुढ़िया की लाठी है, मराठी और गैर मराठी वोटर आप 60-40 पकड़िये। विधानसभा चुनाव के बाद दोनों भाई मराठी का मुद्दा इसीलिए उठाने मे लगे है।

देवेंद्र फडणवीस ने अच्छा किया कि अपना आदेश वापस ले लिया अन्यथा इन्हे फिर मुद्दा मिल जाता। हालांकि तीन भाषा से चलते तो मराठी का ज्यादा फायदा होता, क्योंकि जो गैर मराठी रह रहे है उनके बच्चों पर दबाव होता कि अब तो वे मराठी ही सीखे।

लेकिन अक्ल बड़ी या भैस, इसका जवाब है शायद राजनीति सबसे बड़ी है।

ठाकरे बंधुओ को मराठी से नहीं अपने अस्तित्व से मतलब है, राज ठाकरे का बेटा चुनाव हार गया क्योंकि दोनों ठाकरे एक नहीं थे। उद्धव का बेटा हारते हारते बच गया था।

ठाकरे को आप महाराष्ट्र का लालू परिवार समझिये, प्रशांत किशोर की भाषा मे कहे तो ठाकरे कितने अच्छे पिता है जो अपने बच्चों के लिये दूसरो के बच्चे बर्बाद करने को तैयार है।

तब का निजी अनुभव बताऊ तो मराठी भाषी बहुत अच्छे है, सहिष्णु है, मित्रवत है और बेहद समझदार भी। उन्हें हिन्दी से कोई समस्या नहीं है, मुझे महाराष्ट्र मे ऐसा कोई व्यक्ति नहीं मिला जो हिन्दी ना पढ़ सके।

इसलिए यदि किसी के मन मे वैमनस्य भाव आ रहा हो तो अभी त्याग दो, राज ठाकरे ने एक बात बहुत अच्छी कही कि महाराष्ट्र हिन्दी भाषी राज्यों से ज्यादा समृद्ध है।

हालांकि ये लॉजिक मेरे भी पल्ले नहीं पड़ा, हरियाणा की प्रतिव्यक्ति आय महाराष्ट्र से ज्यादा है, उत्तराखंड की लगभग बराबर है।

शायद उसका आशय कुल घरेलू उत्पादन से होगा, लेकिन उसमे तो महाराष्ट्र को पकड़ने वाला राज्य दूर दूर तक कोई नहीं है। महाराष्ट्र का सकल घरेलू उत्पादन कई देशो से भी ज्यादा है, ये प्रगति प्रशंसनीय है।

लेकिन हर क्षेत्र का अपना एक समय होता है, ज़ब पाकिस्तान नहीं बना था और सिल्क रूट चालू था तब उत्तर के राज्य ही सबसे ज्यादा धनी थे। पाकिस्तान बनने के बाद सिल्क रूट बंद हुआ और आधे से ज्यादा कुटीर उद्योग वही बर्बाद हो गए।

जो निर्यात उज़्बेकिस्तान के जरिये होना था वो अब समुद्र के रास्ते होने लगा, यदि निर्यात बिंदु वहाँ है तो फैक्ट्री भी वही लगनी चाहिए।

अब इस विकास का भाषा से कोई लेना देना नहीं है, राज ठाकरे ने यह भ्रामक प्रचार करने के लिये कहा है। उद्धव ने कहा कि बीजेपी ने मुंबई की जमीन अडानी को दें दीं, जबकि मुंबई की सबसे ज्यादा जमीन पारसियों के पास है।

कुल मिलाकर ठाकरे बंधु मतलब कही की ईट कही का रोढ़ा, शून्य धन शून्य बराबर शून्य। इससे ज्यादा महत्व इस नौटंकी का और कुछ नहीं। हिन्दी भाषियो को चाहिए कि मराठी पर किसी भी प्रकार का कमेंट करने से बचे और सरकार पर दबाव ना बनाये।

वहाँ भी बीजेपी की सरकार है और यहाँ भी, कुछ करेंगे तो भी दिक्क़त होंगी नहीं करेंगे तो भी बेकार मे एक नया बखेड़ा खड़ा हो जाएगा।