चलो पहाड़ ……..

by | Sep 2, 2024

 

जबसे मैंने गुप्ता बंधुओं का खुलासा किया तब से अब तक इस पूरे प्रकरण पर तथाकथित पहाड़ हितेषियों ने एक ही निचोड़ निकाला कि …..उमेश कुमार मैदानी है, पहाड़ी नही है ,ब्लैकमेलर है…. और फिर मेरे लिए गाली ग्लोच और अपशब्दों की भरमार !!!

वाह !! भाई ।। मेरे तथाकथित पहाड़ हितेषियो….!!! भ्रष्टाचारियों का मनोबल बढ़ाओ ,जिन्होंने पूरा पहाड़ खा लिया … जिन्होंने जनता के पैसों के कमीशन से अपनी पीढ़ी पुश्तों के लिए भी कमा लिया । उनके पक्ष में खड़े रहना क्योंकि वो पहाड़ी हैं और जो भ्रष्टाचार खोले उसको गिराओ क्योंकि मैं पहाड़ का नही हूं।

किस पहाड़ प्रेम की बात करते हो तुम लोग? जब उत्तराखंड नही बना था तब तो तुम भी दिल्ली , लखनऊ में थे और राज्य बनने के बाद देहरादून शिफ्ट हो गए।
देहरादून में बैठकर पहाड़ के हितों का स्वांग मत रचिये।

पलायन पर चिंतन करने वालों की टोली चिंतन करते करते न जाने कब देहरादून पहुंच गई ?

पलायन पर गीतों के माध्यम से जनता का मर्म छूने वाले न जाने कब देहरादून पलायन कर गए ?

पलायन पर लंबे चौड़े भाषण देने वाले नेताओं का तो कहना ही क्या उन्होंने तो देश विदेशों तक घर बना लिए।

जब सबने पलायन कर लिया और पहाड़ों में शिक्षा,स्वास्थ्य ,रोजगार , स्वरोजगार चौपट कर दिया तो उनके पीछे पीछे मजबूर जनता ने भी पलायन कर दिया। अब पहाड़ों के गांवों में वही लोग हैं जो सच्चे और कर्मठ पहाड़ी हैं ।

पलायन पर बात करने वाले खुद पलायन कर गए। लोक भाषा बचाने वाले अपने बच्चों को कॉन्वेंट मे शिफ्ट कर गए।रोजगार की बात उठाने वाले खुद अपने रोजगार का जुगाड करके अमीर बन गए। पहाड़ मे पलायन, लोकभाषा ,रोजगार की बात करने वाले एनजीओ औऱ ट्रस्ट की जांच की जाए तो 99% फाउंडर सब्सिडी खाकर अपने ही विकास में जुट गए ।

इन नेताओं से नही पूछोगे कि तुम्हारी पत्नी और रिश्तेदारो की पोस्टिंग वर्षों से मैदानी क्षेत्रों में ही कैसे है ? वही पहाड़ों में दुर्गम में रहने वाले कर्मठ शिक्षक ,गांवों में बच्चो को पढ़ा भी रहे हैं और राष्ट्रीय पुरुस्कार भी ला रहे हैं।

चलो । मेरा इन तथाकथित पहाड़ हितेषियो को खुला चेलेंज है कि 50 लोगों की सूची बनाओ जिनके घर देहरादून में है और जो देहरादून से पहाड़ शिफ्ट होने के लिए तैयार हैं।
मैं तो तैयार हूं क्योंकि मैंने तो पहाड़ में अपना घर भी बना लिया है जहां साल भर में परिवार सहित रहता भी हूं। आओ चलते हैं सब पहाड़ों में ही रहने। वही से पहाड़ के पलायन, शिक्षा ,स्वास्थ्य ,रोजगार , स्वरोजगार पर आवाज उठाते हैं । बोलो तैयार हो ??

पूछोगे नही अपने इन नेताओं को कभी कि क्या किया तुमने पहाड़ के लिए ? कौन सी फैक्ट्री लगाई पहाड़ में ? बेरोजगारों को क्या रोजगार दिए ? स्वास्थ्य के अभाव में मरती गर्भवती महिलाओं के बारे में सोचा कभी ? पर तुम्हारी हिम्मत नही हैं अपने इन पहाड़ के नेताओं को पूछने की? इसमें भी कहोगे कि…. अरे… उमेश कुमार तो ब्लैकमेलर है… मैदान का है…!!

कोविड़ काल तो याद होगा जब पूरा पहाड़ कराह रहा था अल्मोड़ा में 18 लोगों की चिताएं एक साथ जल रही थी। इंसान दूध की थैली पकड़ने में भी डर रहा था तब भी मैं पहाड़ के साथ खड़ा था। हजारों लोगो को सोनू सूद ,मोहम्मद शमी और अपने अन्य संपर्क और संबंधों से निजी खर्चे से मुंबई, चेन्नई , दिल्ली, हरियाणा से लाकर गांव गांव पहुंचाया। खुद हेलीकॉप्टर से पहाड़ के कोने कोने में जाकर राहत पहुंचाई।

प्रतियोगी परीक्षाओं में हरिद्वार जिले के बच्चों की गढ़वाली , कुमाऊनी भाषा की समस्या को लेकर मेरे द्वारा लिखे पत्र पर इतनी टिप्पणी करने के बजाय आओ न इस दिशा में आगे बढ़ो ताकि मैदानी इलाकों के बच्चे भी पहाड़ की बोली भाषा सीख सकें। पाठ्यक्रम में शामिल करवाओ। प्रत्येक विद्यालय में बोली भाषा के शिक्षक की अनिवार्यता करवाओ।
पर इस मूल विषय पर नही बोलेंगे जिससे इंप्लीमेंट होना है। हम तो अपने बच्चों को अपने पहाड़ी गांव में ले जाकर वहां के बच्चों से बोली भाषा सिखाते हैं।
तथाकथित पहाड़ हितेषी का मुखौटा ओढ़ने वाले लोगों से पूछा जाना चाहिए कि तुमने अपने बच्चों को गढ़वाली कुमाऊनी सिखाई है क्या ? या वो भी ऐसे ही हैं कि… समझ तो जाते हैं but बोलनी नही आती। यानि बींग तो जाते हैं पर बच्याते नहीं?
क्या फायदा फिर ? ऐसे तो अगली कुछ पीढ़ीयों बाद बोली भाषा भी विलुप्त हो जाएगी जब बोलने वाला कोई नही रहेगा। मेरी तो मांग है कि बोली भाषा के उत्थान के लिए सरकार ग्राउंड पर काम करे और अनिवार्य विषय बना ले।

उत्तराखंड में कुछ लोग पहाड़ और मैदान की राजनीति तक ही सीमित हैं जबकि ये इस राज्य की खूबसूरती है कि यहां पहाड़ और मैदान का संगम है। जहां हरिद्वार ,देहरादून , काशीपुर, रुद्रपुर में बैठा मैदान का व्यक्ति पहाड़ के काफल और बुरांस का स्वाद चखता है वहीं पहाड़ों से निकलने वाली पवित्र गंगा के पानी से मैदानों में साग सब्जीयां और अनाज उगाकर पहाड़ों में भेजता है।